कांग्रेस कमेटी द्वारा सैयदराजा शहीद स्मारक पर शहीदों को नमन करते हुए पुष्पांजलि अर्पित कर मनाया गया क्रांति दिवस
रिपोर्टिंग बाई- गणेश अग्रहरि
चंदौली प्राइम समाचार टुडे: 9 अगस्त को जिला कांग्रेस कमेटी चन्दौली के द्वारा सैयदराजा शहीद स्मारक पर शहीदों को नमन करते हुए पुष्पांजलि अर्पित कर क्रांति दिवस मनाया गया कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कांग्रेस जिलाध्यक्ष धर्मेन्द्र तिवारी ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आन्दोलन के साथ सन् 1942 की ऐतिहासिक अगस्त क्रांति की वर्षगांठ का दिन है।
आधुनिक भारतीय राष्ट्रनिर्माण,राष्ट्रीय आन्दोलन में देशव्यापी राजनीतिक लोक चेतना के सक्रिय जुड़ाव का दौर महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ, जिन्होंने सही अर्थों में स्वतंत्रता के राष्ट्रीय आन्दोलन को एक राष्ट्रीय जनान्दोलन बनाया। चम्पारण और खेड़ा आदि में सत्याग्रह जनांदोलन के परीक्षणात्मक सफल प्रयोगों के बाद गांधीजी ने देशव्यापी राष्ट्रीय जनांदोलन की शुरुआत 1920 के असहयोग आंदोलन से की थी, जो भारत के इतिहास में राष्ट्रीय राजनीतिक लोक- चेतना पर आधारित प्रथम राष्ट्रीय जनांदोलन था। वह और साइमन कमीशन विरोध, सन् 1930 एवं 32 के सविनय अवज्ञा आंदोलन और सन् 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन के क्रम में 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन की अगस्त क्रांति जहां पूरी तरह देश के आम आदमी का जनसंघर्ष था, वहीं वह भारतीय स्वतंत्रता के राष्ट्रीय आन्दोलन का निर्णायक संघर्ष था। बेशक गांधी जी ने भी विश्वयुद्ध के शुरू होने के ब्रिटेन से असहयोग और आजादी के लिये निर्णायक आन्दोलन के पक्षधर थे, लेकिन लोकतांत्रिक ब्रिटिश साम्राज्य से लड़ने में जर्मनी-इटली के फासिस्ट साम्राज्यवाद से हांथ मिलाने एवं उसके लिये युद्ध का हिस्सा बनने को खतरनाक मानते थे। दूसरी तरफ वह भारत में बड़ा एवं निर्णायक जनांदोलन शुरू करने से तैयारी एवं अनुकूल जनमत निर्माण, जनचेतना जागृत करने का वक्त चाहते थे। चुप बैठने के भी कायल नहीं थे। अतः 1940 में पहले व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू किया, जिसमें एक एक कर 25 हजार जेल गये। वह मानते थे कि तब तक आम आदमी का मानस बड़ी लड़ाई के लिये तैयार कर लेंगे, क्योंकि उन्हें पता था कि आन्दोलन शुरू होने पर तो सभी छोटे बड़े नेता बंद कर दिये जायेंगे। अतः “क्विट इंडिया” का अंग्रजों को सीधी चेतावनी का ललकार कर खुला संदेश देने के साथ भारतीय का भी निर्णायक लड़ाई के लिये सीधा आह्वान “करो या मरो” के नारे के साथ दिया। अतः भारत छोड़ो आंदोलन न केवल मात्रात्मक स्वरूप, बल्कि मूल्यपरक गुणात्मक अर्थों में भी स्वतंत्रता संघर्ष काल के पूर्व के सभी आन्दोलनों से भिन्न था। नेता बंदी बना लिये गये और जनता ने देशभर में ढाई वर्ष तक आन्दोलन चला दिया। कांग्रेस के नेताओं सहित उसका झंडा लेकर आन्दोलन का हिस्सा 60 हजार लोग जेल में डाले गये। बड़ी संख्या में शहादतें और उत्पीड़न की अनेक घटनायें हुईं। बेशक साम्राज्यवादियों ने भारत से जाते जाते भी कई तरह की साजिशें रचीं और क्रियान्वित कीं। फिर भी 1942 के लंबे चले भारत छोड़ो आन्दोलन की क्रांति ने यह बात एकदम मुनादी कर दी कि अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही होगा, भारत की आजादी जिसे अब टाला नहीं जा सकता। इस जन संघर्ष में जैसी देशव्यापी जनभागीदारी हुई, उसने यह भी तय कर दिया कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता, भारत में साम्राज्यवाद को ही नहीं सामंतवाद को भी दफन करेगी और यह आजादी भारत में एक नये संवैधानिक लोकतंत्रात्मक गणराज्य का मार्ग प्रशस्त करेगी। भारत के लोग अब साम्राज्यवाद एवं सामंतशाही दोनों को ही सहन नहीं करेंगे और भारत में विधि के शासन की गारंटी वाले संवैधानिक लोकतंत्र की राह में जो भी शक्ति अवरोध बनेगी, उसे भारत के आम लोगों की संगठित ताकत उखाड़ फेंकेगी।
इस कार्यक्रम में रामानंद सिंह यादव, समर बहादुर सिंह, राममूरत गुप्ता, मुनीर खान, प्रदीप मिश्रा,प्रेमचंद गुप्ता, सत्येंद्र उपाध्याय, सिराजुद्दीन भुट्टो, श्रीकांत पाठक, कमलेश कुमार संत, विश्वजीत सेठ, माधवेंद्र मूर्ति ओझा, सैयद अंसारी, शमशाद, कमलेश, बाबूलाल तिवारी, नरेंद्र तिवारी, नासिर जमाल, फखरुद्दीन,शब्बीर खान, फैयाज अंसारी, विनोद पाल, इत्यादि कांग्रेसजन मौजूद रहे।